मुंबई 13 जनवरी (वार्ता) फिल्म जगत के मशहूर शायर एवं गीतकार कैफी आजमी की शेरो-शायरी की प्रतिभा बचपन से ही दिखाई देने लगी थी।
14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश मे आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव मे जन्में सैयद अतहर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी के पिता जमींदार थे। पिता हुसैन उन्हें उंची से उंची तालीम देना चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने उनका दाखिला लखनऊ के प्रसिद्ध सेमिनरी ‘सुल्तान उल मदारिस ’में करवाया था। कैफी आजमी के अंदर का शायर बचपन से जिंदा था।
महज ग्यारह वर्ष की उम्र से ही कैफी आजमी ने मुशायरों मे हिस्सा लेना शुरू कर दिया था जहां उन्हें काफी दाद भी मिला करती थी लेकिन बहुत से लोग जिनमें उनके पिता भी शामिल थे ऐसा सोचा करते थे कि कैफी आजमी मुशायरों के दौरान खुद की नहीं बल्कि अपने बड़े भाई की गजलों को सुनाया करते हैं ।
एक बार पुत्र की परीक्षा लेने के लिये पिता ने उन्हें गाने की एक पंक्ति दी और उस पर उन्हें गजल लिखने को कहा । कैफी आजमी ने इसे एक चुनौती के रूप मे स्वीकार किया और उस पंक्ति पर एक गजल की रचना की। उनकी यह गजल उन दिनों काफी लोकप्रिय हुई और बाद में सप्रसिद्ध गायिका बेगम अख्तर ने उसे अपना स्वर दिया। गजल के बोल थे ‘इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े ,ना हंसने से हो सुकूं ना रोने से कल पड़े।”
अपने गीतों से लोगों को दीवाना बनाया कैफी आजमी ने