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मुंबई, 04 जनवरी (वार्ता) बॉलीवुड में सी.रामचंद्र का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने न केवल संगीत निर्देशन की प्रतिभा से बल्कि गायकी, फिल्म निर्माण, निर्देशन और अभिनय से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाये रखा।
फिल्म जगत में 'अन्ना साहब' के नाम से मशहूर सी.रामचंद्र से फिल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही। वर्ष 1918 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक छोटे से गांव पुंतबा में जन्मे सी.रामचंद्र का रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा गंधर्व महाविद्यालय के विनाय कबुआ पटवर्धन से हासिल की। सी.रामचंद्र ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत बतौर अभिनेता यू.भी.राव की फिल्म 'नागानंद' से की। उसी दौरान उन्हें मिनर्वा मूवीटोन की निर्मित कुछ फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। तभी उनकी मुलाकात महान निर्माता निर्देशक सोहराब मोदी से हुयी। सोहराब मोदी ने सी.रामचंद्र को सलाह दी कि यदि वह अभिनय के बजाय संगीत की ओर ध्यान दें तो फिल्म इंडस्ट्री में सफल हो सकते है ।
इसके बाद सी.रामचंद्र मिनर्वा मूविटोन के संगीतकार बिंदु खान और हबीब खान के ग्रुप में शामिल हो गये और बतौर हारमोनियम वादक काम करने लगे। बतौर संगीतकार उन्हें सबसे पहले एक तमिल फिल्म में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फिल्म 'सुखी जीवन' की सफलता के बाद रामचंद्र कुछ हद तक बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। चालीस के दशक में रामचंद्र ने संगीतकार के रूप में जिन फिल्मों को संगीतबद्ध किया उनमें 'सावन', 'शहनाई', 'पतंगा', 'समाधि' एवं 'सरगम' प्रमुख रही।
वर्ष 1951 में रामचंद्र को भगवान दादा की निर्मित फिल्म 'अलबेला' में संगीत देने का मौका मिला। फिल्म अलबेला में अपने संगीतबद्ध गीतों की कामयाबी के बाद रामचंद्र बतौर संगीतकार फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। यूं तो फिल्म 'अलबेला' में उनके संगीतबद्ध सभी गाने सुपरहिट हुये लेकिन खासकर 'शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के', 'भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे', 'मेरे पिया गये रंगून किया है वहां से टेलीफून' ने पूरे भारत वर्ष में धूम मचा दी। वर्ष 1953 में प्रदीप कुमार, बीना राय अभिनीत फिल्म 'अनारकली' की सफलता के बाद रामचंद्र शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। फिल्म अनारकली में उनके संगीत से सजे ये गीत 'जाग दर्द इश्क जाग', 'ये जिंदगी उसी की है' श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है ।
वर्ष 1953 में रामचंद्र ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा और 'न्यू सांई प्रोडक्शन' का निर्माण किया जिसके बैनर तले उन्होंने 'झंझार', 'लहरें' और 'दुनिया गोल' है जैसी फिल्मों का निर्माण किया लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नही हुयी जिससे उन्हें काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली और अपना ध्यान संगीत की ओर लगाना शुरू कर दिया।
वर्ष 1954 मे प्रदर्शित फिल्म 'नास्तिक' में उनके संगीतबद्ध गीत 'देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान' समाज में बढ़ रही कुरीतियों पर उनका सीधा प्रहार था। पचास के दशक में स्वर साम्राग्यी लता मंगेश्कर ने संगीतकार रामचन्द्र की धुनों पर कई गीत गाये। फिल्म 'अनारकली' के गीत 'ये जिंदगी उसी की है', 'जाग दर्दे इश्क जाग' जैसे गीत इन दोनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल है।
साठ के दशक मे पाश्चात्य गीत संगीत की चमक से फिल्मकार अपने आप को नहीं बचा सके और धीरे धीरे निर्देशकों ने रामचंद्र की ओर से अपना मुख मोड़ लिया लेकिन वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'तलाक' और वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'पैगाम' में उनके संगीतबद्ध गीत 'इंसान का इंसान से हो भाईचारा' की कामयाबी के बाद रामचंद्र एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गये।
वर्ष 1962 में देश के वीरों को श्रद्धाजंलि देने के लिये कवि प्रदीप ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी' गीत की रचना की और उसका संगीत बनाने की जिम्मेदारी रामचंद्र को दी। रामचंद्र के संगीत निर्देशन में एक कार्यक्रम के दौरान लता मंगेश्कर की आवाज में देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों मे आंसू छलक आये थे। इसे आज भी भारत के महान देशभक्ति गीत के रूप मे याद किया जाता है।
साठ के दशक में रामचंद्र ने 'धनंजय' और 'घरकुल' जैसी मराठी फिल्मों का निर्माण किया। रामचंद्र ने इन फिल्मों में अभिनय और संगीत निर्देशन भी किया। संगीत निर्देशन के अलावे रामचंद्र ने अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। इन गीतों में 'मेरी जान मेरी जान संडे के संडे', 'शहनाई', 'कदम कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत गाये जा', 'समाधि', 'भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे', 'शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के', 'अलबेला', 'कितना हसीं है मौसम कितना हसीं सफर है', 'आजाद', 'अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूंघट' नवरंग आदि न भूलने वाले गीत शामिल है। रामचंद्र ने अपने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 150 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल, मराठी, तेलगु और भोजपुरी फिल्मों को भी संगीतबद्ध किया। अपने संगीतबद्ध गीतों से श्रोताओं के दिलों में खास पहचान बनाने वाले संगीतकार रामचंद्र पांच जनवरी 1982 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे सी. रामचंद्र