द्विराष्ट्र सिद्धांत पर बोले शशि थरूर, सबसे पहले वीर सावरकर ने ही की थी इसकी वकालत


जयपुर। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने शुक्रवार को कहा कि दक्षिणपंथी नेता वीर सावरकर ने ही सबसे पहले द्विराष्ट्र सिद्धांत सामने रखा था और उसके तीन साल बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने यह भी कहा कि विभाजन के समय सबसे बड़ा सवाल था कि क्या धर्म राष्ट्र की पहचान होना चाहिए। थरूर ने जी जयपुर साहित्य उत्सव में कहा कि मुस्लिम लीग द्वारा 1940 में अपने लाहौर अधिवेश में इसे सामने रखने से पहले ही सावरकर इस सिद्धांत की पैरोकारी कर चुके थे। लोकसभा सदस्य ने कहा कि (महात्मा) गांधी और (जवाहरलाल) नेहरू और कई अन्य की अगुवाई में भारत में ज्यादातर लोगों ने कहा कि ‘ धर्म आपकी पहचान तय नहीं करता, यह आपकी राष्ट्रीयता तय नहीं करता, हमने सभी की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और सभी के लिए देश का निर्माण किया।’ थरूर ने कहा, ‘‘सावरकर ने कहा कि हिंदू ऐसा व्यक्ति है जिसके लिए भारत पितृभूमि (पूर्वजों की जमीन), पुण्यभूमि है। इसलिए, उस परिभाषा से हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन दोनों श्रेणियों में समाते थे, मुसलमान और ईसाई नहीं।’’ उन्होंने कहा कि हिंदुत्व आंदोलन ने ‘संविधान को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपनी पुस्तक ‘व्हाई एम आई ए हिंदू’ में सावरकर, एम एस गोलवलकर और दीन दयाल उपाध्याय का हवाला दिया है। ये ऐसे लोग थे जो मानते थे कि धर्म से ही राष्ट्रीयता तय होनी चाहिए।’’ थरूर ने कहा, ‘‘ अपनी ऐतिहासिक कसौटी में द्विराष्ट्र सिद्धांत के पहले पैरोकार वाकई वी डी सावरकर ही थे जिन्होंने हिंदू महासभा के प्रमुख के तौर पर भारत से हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग अलग राष्ट्र के रूप मे मान्यता देने का आह्वान किया था। तीन साल बाद मुस्लिम लीग ने 1940 में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया।’’