कुप्रबंधन से बढी आर्थिक बदहाली का बजट में जवाब दे सरकार: कांग्रेस


नयी दिल्ली, 27 जनवरी (वार्ता) कांग्रेस ने कहा है कि सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के कारण देश में हर व्यक्ति पर बढे कर्ज का बोझ घटाने और जीडीपी, औद्योगिक उत्पादन, आयात, निर्यात, निवेश, खपत जैसे कई क्षेत्रों में गिरावट रोकने के उपायों का बजट में विस्तार से जवाब दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस प्रवक्ता गौरव बल्लभ ने मंगलवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पिछले साढ़े पांच साल के दौरान आर्थिक कुप्रबंधन के कारण विकास के हर क्षेत्र में गिरावट दर्ज की जा रही है। सकल घरेलू उत्पादन -जीडीपी घट रहा है, औद्योगिक उत्पादन, आयात, निर्यात, निवेश, लोगों की क्रय क्षमता और डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत लगातार गिर रही है लेकिन इसे रोकने के ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस अवधि में देश के आम नागरिक पर कर्ज का बोझ अप्रत्याशित रूप से बढा है। प्रति व्यक्ति कर्ज पिछले साढे पांच साल में 67 प्रतिशत बढ़ा है। उनका कहना था कि 2014 में 41200 रुपए का कर्ज प्रति व्यक्ति था जो आज बढकर 68400 हो गया है। मतलब यह कि सरकार की अक्षमता के कारण साढे पांच साल में देश के हर नागरिक पर 27200 रुपए का अतिरिक्त कर्ज का बोझ डाला गया है।
प्रवक्ता ने कहा कि चार दिन बाद बजट पेश किया जाना है और उससे एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट आएगी लेकिन इसको लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण निष्क्रिय बनी हुई हैं। एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ देश के शीर्ष उद्योगपतियों की बैठक हुई लेकिन आश्चर्य की बात है कि बैठक में वित्त मंत्री मौजूद नहीं थीं। इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है जब बजट के दिनों उद्योगपति प्रधानमंत्री से मिलें और वित्त मंत्री इस दौरान गैरमौजूद रहे हों। वित्त राज्य मंत्री आर्थिक मुद्दों पर बोलने की बजाय विवादित बयान दे रहे हैं। श्री गौरव बल्लभ ने कहा कि सरकार को बजट में बताना चाहिए कि उसके आर्थिक कुप्रबंधन के कारण देश के लोगों पर कर्ज का जो बोझ बढ रहा है उसको कम करने के लिए बजट में किस तरह के उपया किए जा रहे हैं। देश के आर्थिक मंदी से निकालने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं देश की जनता को इससे जुड़े सवालों का जवाब बजट में दिया जाना चाहिए।कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि देश की आर्थिक स्थिति जब डांवाडोल होती है तो उस स्थिति में कर्ज का बोझ बढने लगता है तो उसके दुष्परिणाम कई तरह से सामने आने लगते हैं। इससे मुद्रा दर घटती है तो कर्ज डॉलर में लौटाना पडता है इसलिए बोझ और बढ जाता है। रुपए की स्थिति वर्ष 2014 में 59 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर थी जो आज 71 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
उन्होंने कहा कि कर्ज बढने का दूसरा बड़ा नुकसान यह होता है कि इससे देश की रेटिंग घट जाती है। रेटिंग घटने से विदेशी निवेश ठंडा पड़ने लगता है। तीसरा दुष्परिणाम यह है कि जब कुल कर्ज बढेगा और सरकार कर्ज लेकर काम चलाना शुरू करती है तो ब्याज की दर भी तेजी से बढने लगती है। इसके अलावा कर्ज बढने से महंगाई बढती है और फिर निवेश टूटने लगता है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार सिर्फ आर्थिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर ही असफल नहीं हो रही है बल्कि सरकार की अपनी आय भी कम हो रही है। एक आंकड़े के अनुसार 18 लाख करोड़ रुपए की आय होने का सरकार का अनुमान था लेकिन इसमें छह लाख करोड़ रुपए कम एकत्रित हो रहे हैं। यदि राजस्व संग्रह कम होता है तो सरकारी खजाने पर इसका विपरीत असर पड़ता है और देश का वित्तीय घाटा बढने लगता है।श्री गौरव बल्लभ ने कहा कि सरकार को बजट में बताना चाहिए कि उसके आर्थिक कुप्रबंधन के कारण देश के लोगों पर कर्ज का जो बोझ बढ रहा है उसको कम करने के लिए बजट में किस तरह के उपया किए जा रहे हैं। देश के आर्थिक मंदी से निकालने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं देश की जनता को इससे जुड़े सवालों का जवाब बजट में दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि देश की आर्थिक स्थिति जब डांवाडोल होती है तो उस स्थिति में कर्ज का बोझ बढने लगता है तो उसके दुष्परिणाम कई तरह से सामने आने लगते हैं। इससे मुद्रा दर घटती है तो कर्ज डॉलर में लौटाना पडता है इसलिए बोझ और बढ जाता है। रुपए की स्थिति वर्ष 2014 में 59 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर थी जो आज 71 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
उन्होंने कहा कि कर्ज बढने का दूसरा बड़ा नुकसान यह होता है कि इससे देश की रेटिंग घट जाती है। रेटिंग घटने से विदेशी निवेश ठंडा पड़ने लगता है। तीसरा दुष्परिणाम यह है कि जब कुल कर्ज बढेगा और सरकार कर्ज लेकर काम चलाना शुरू करती है तो ब्याज की दर भी तेजी से बढने लगती है। इसके अलावा कर्ज बढने से महंगाई बढती है और फिर निवेश टूटने लगता है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार सिर्फ आर्थिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर ही असफल नहीं हो रही है बल्कि सरकार की अपनी आय भी कम हो रही है। एक आंकड़े के अनुसार 18 लाख करोड़ रुपए की आय होने का सरकार का अनुमान था लेकिन इसमें छह लाख करोड़ रुपए कम एकत्रित हो रहे हैं। यदि राजस्व संग्रह कम होता है तो सरकारी खजाने पर इसका विपरीत असर पड़ता है और देश का वित्तीय घाटा बढने लगता है।