फ्रांस की लेफ्ट-राइट व्यवस्था से बने वामपंथी और दक्षिणपंथी शब्द
सी.एस. राजपूत
नई दिल्ली। देश में वैसे तो कई विचारधारा से जुड़े राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। कोई दल अपने को समाजवादी विचारधारा से जुड़ा बताता है तो कोई अंबेडकरवादी। किसी को माओवाद से जुड़ा मानते हैं तो किसी को संघवाद से। हां जब से देश में मोदी सरकार बनी है तब से वामपंथी और दक्षिण पंथी शब्द बहुत सुनने को मिल रहे हैं। सत्ता में बैठे लोगों को वामपंथी शब्द नहीं सुहाता है तो विपक्ष में बैठे लोगों को दक्षिणपंथ। विपक्ष में बैठे लोग सत्तापक्ष के लोगों को दक्षिणपंथी बताकर पूंजीपतियों के हमदर्द बताते हैं तो सत्ता में बैठे लोग वामपंथियों को मजदूरों को उकसाकर अपने हित में इस्तेमाल करने के रूप में दर्शाते हैं। यही वजह है सत्ता में बैठे लोगों के मुंह से कई बार कामरेड की परेभाषा काम की रेड मारने वालों के रूप मे करते देखा जाता है।
यह देश की सियासत ही है कि जिस वामपंथी और दक्षिणपंथ का किसी विचारधारा से कोइे लेना देना नहीं था उसे दो अलग-अलग विचारदारा से जोड़ दिया गया है। दरअसल यह सिर्फ असेंबली में बैठने की एक व्यवस्था का नाम था।
हमारे देश में ऐसा प्रचलन है कि हिन्दुत्व की विचारधारा रखने वाली पार्टियों को दक्षिणपंथी और किसान, मजदूरों व कमजोरों के नाम पर बने संगठनों को वामपंथी बोल दिया जाता है। यदि बात वैश्विक स्तर पर बात की जाए तो उदार कहे जाने वाले तबके के लिए वामपंथी यानी लेफ्ट विंग और कंजर्वेटिव के लिए दक्षिणपंथी यानी राइट विंग का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हमारे देश में वामपंथियों के लिए लेफ्ट और हिन्दुत्व पर राजनीति करने वाली पार्टियों को दक्षिणपंथी बोला जाता रहा है।
दरअसल यह शब्द फ्रांस से आया है। वर्ष 1789 में जब फ्रेंच नेशनल असेंबली के सदस्य संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए जमा हुए तो 16वें किंग लुई को मिलने वाले अधिकारों को लेकर सदस्यों के बीच काफी मतभेद पैदा हो गया। इसका असर यह हुआ कि सदस्य दो हिस्से में बंट गए। एक हिस्सा उन लोगों का था जो राजशाही के समर्थक थे और दूसरे वे सदस्य थे जो राजशाही के खिलाफ थे। उन्होंने अपने बैठने की जगह भी बांट ली थी। राजशाही के विरोधी क्रांतिकारी सदस्य पीठासीन अधिकारी की बायीं ओर बैठ गए जबकि राजशाही के समर्थक कंजर्वेटिव सदस्य पीठासीन अधिकारी के दायीं ओर बैठ गए। इस तरह वहां से लेफ्ट विंग और राइट विंग का कॉन्सेप्ट वजूद में आया। कुछ समय तक समाचारपत्रों ने लेफ्ट और राइट विंग का इस्तेमाल किया जाता रहा। यह सब 1790 तक करीब यह टर्म चल।
फ्रांस में जब नेपोलिय बोनापार्ट का शासन आया तो कई सालों तक लेफ्ट और राइट का कॉन्सेप्ट गायब रहा और साथ ही फ्रेंच असेंबली के अंदर दायें और बायें बैठने की कोई व्यवस्था नहीं रही। फिर 1814 में संवैधानिक राजशाही के शुरू होने के साथ ही लिबरल और कंजर्वेटिव असेंबली में दायें और बायें बैठने लगे। फिर 19वीं सदी के मध्य तक फ्रांस के अखबारों में विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के लिए लेफ्ट और राइट का इस्तेमाल होने लगा।
राजनीतिक पार्टियों ने तो बाद में खुद को 'सेंटर लेफ्टÓ, 'सेंटर राइटÓ, 'एक्सट्रीम लेफ्टÓ और 'एक्सट्रीम राइटÓ के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया। 18वीं सदी तक फ्रांस का 'लेफ्टÓ और 'राइटÓ कॉन्सेप्ट दुनिया के बाकी हिस्सों में पहुंच गया। लेकिन कुछ सालों तक इंग्लिश बोले जाने वाले देशों में इस टर्म का इस्तेमाल नहीं हुआ। वहां 20वीं सदी की शुरुआत में ही जाकर ये टर्म लोकप्रिय हुए। वैसे अब बैठने की व्यवस्था से इस शब्द का कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन कुछ देश में अब भी बैठने की इस तरह की व्यवस्था है। जैसे अमेरिकी संसद में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकंस हाउस और सीनेट चैंबर्स में एक दूसरे के आमने-सामने बैठते हैं।