रासायनों के उपयोगों से जमीन, जल ,वायु, नदी व मानव हो चुका है बीमार: आचार्य देवव्रत

कानपुर 22 जनवरी (वार्ता)। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती की वकालत करते हुये कहा कि रसायनों के उपयोगों से जमीन, जल, वायु, नदी और मानव बीमार हो चुके है।
श्री देवव्रत ने बुधवार को यहां चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के कैलाश भवन सभागार में नमामि गंगे योजना तहत गौ आधारित प्राकृतिक खेती की किसान गोष्ठी को संबोधित करते हुये कहा कि जब रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू हुआ था उस समय प्रति एकड़ दस से 20 किलो यूरिया प्रयोग हो रहा था अब यह मात्रा दो गुनी से अधिक हो चुकी है, जबकि उत्पादन गिरा है। उन्होंने कहा कि इसका तात्पर्य है कि जमीन की कार्बन क्षमता खत्म हो रही है। रासायनों के उपयोगों से जमीन, जल ,वायु, नदी व मानव बीमार हो चुका है। रासायनिक खेती का विकल्प मात्र प्राकृतिक खेती ही है।
उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रान्त में किसान गुरुकुल के माध्यम से 200 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए 300 गायों को पाला है। मात्र 250 रूपये प्रति एकड़ की लागत से 32 कुंतल प्रति एकड़ धान की उपज प्राप्त की गई। रासायनिक लागत 12 हजार रूपये प्रति एकड़ से अधिक है और उपज 25 कुंतल प्रति एकड़ धान का उत्पादन हो रहा है।
श्री देवव्रत ने कहा कि एक देसी गाय के एक दिन के गोबर व मूत्र से जीवामृत खाद बना कर रसायन का विकल्प है। उन्होंने बताया कि शुद्ध देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 करोड़ मित्र जीवाणु होते है। दूध न देने वाली अन्ना गाय के एक ग्राम गोबर में 500 करोड़ मित्र जीवाणु होते है। यह किसी जर्सी गाय में संभव नहीं है। एक प्लास्टिक के टब में 180 लीटर पानी में गाय के एक दिन का गोबर व मूत्र ,लगभग दो किलो किसी भी दाल का बेसन , किसी बड़े वृक्ष के नीचे की दो किलो मिट्टी को टब में डाल कर क्लॉक वाइज डंडे से टब के अंदर घुमाने से पेस्ट तैयार होगा उसमें खरबों की संख्या में मित्र जीवाणु पैदा हो जायेगें। इसका प्रयोग करने से बिना केमिकल के खाद्यान्न पैदा किया जा सकता है। मात्र एक गाय 30 एकड़ कृषि योग्य खेती के लिए पर्याप्त है।
उन्होंने कहा कि इस पर सरल भाषा में एक किताब भी लिखी है। बीजामृत वघन के प्रयोग से देशी केचुए जो कि 15-20 फ़ीट जमीन के नीचे जा चुके है, वापस खेतो में आ जाएंगे। उन्होंने बताया कि गुरुकुल की 80 एकड़ पूर्ण बंजर भूमि को उन्होंने एक ही फसल में जीवंत बनाया है। आंध्र प्रदेश के पांच लाख, हिमांचल प्रदेश के 50 हजार ,गुजरात के दो लाख किसान गौ आधारित प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं।