नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने ‘‘लैंगिक समानता’’ पर एक ऐतिहासिक फैसले में मंगलवार को कहा कि महिला अधिकारियों को समान सैन्य अधिकार देने से इनकार करने के ‘101 बहाने’ नहीं हो सकते हैं। साथ ही, नौसेना में महिला अधिकारियों के लिये स्थाई कमीशन प्रदान किये जाने का रास्ता साफ करते हुए केंद्र सरकार को तीन महीनों के अंदर इसके लिए तौर तरीके तैयार करने को कहा। न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने आईएनएस ज्योति युद्धपोत पर सेवारत महिला नौसेना अधिकारियों की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए 64 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि ‘भेदभाव के इतिहास’ से बाहर निकलने के लिये महिलाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करना जरूरी है। न्यायालय ने इसके साथ ही नौसेना में पुरुष और महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किए जाने पर जोर देते हुए महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन को मंजूरी दे दी। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि गरिमा के संवैधानिक अधिकार, कार्य की निष्पक्ष और समान शर्तों तथा समान अवसर प्रदान करने के लिये 101 बहाने कोई जवाब नहीं है।
नौसेना में महिला अधिकारियों के लिए शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने वाली अधिकारी ने कहा कि वह आशा करती हैं कि महिला एक युद्धपोत की कमान संभालें। न्यायालय के फैसले से खुश याचिकाकर्ताओं में शामिल कोमोडोर (सेवानिवृत्त) सुमती बलूनी ने कहा कि उनके लिए अगली चीज महिला अधिकारी को युद्धपोत की कमान संभालते और पनडुब्बियों में सेवारत होते देखना होगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला नौसेना के अंदर मानसिकता बदलने में मदद करेगा। उन्होंने इसके लिए एक दशक से अधिक समय तक कानूनी लड़ाई लड़ी। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि लैंगिक समता का संघर्ष विचारों के बीच टकराव का सामना करने के बारे में है और इतिहास में ऐसे उदाहरणों की भरमार है जहां कानून के तहत महिलाओं को उनके हक और कार्यस्थल पर निष्पक्षता तथा समान व्यवहार से वंचित किया गया है।
पीठ ने थल सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन प्रदान करने के ऐतिहासिक निर्णय के ठीक एक महीने बाद नौसेना की महिला अधिकारियों को यह अधिकार देने की व्यवस्था दी। न्यायलय ने केन्द्र को इस महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन की सुविधा प्रदान करने के तौर तरीके तैयार करने के लिये तीन महीने का वक्त दिया है। पीठ ने समुद्र में कुछ ड्यूटी महिला अधिकारियों के अनुरूप नहीं होने संबंधी केन्द्र की दलील के बारे में कहा कि इसका आधार यह है कि शारीरिक संरचना की वजह से पुरुष अधिकारी ऐसे कार्य के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं और इसे स्वीकार करने का तात्पर्य लैंगिक भूमिका के बारे में सामाजिक मान्यता को मंजूरी देना होगा। पीठ ने केन्द्र की सितंबर, 2008 की विवादास्पद नीति के उस भावी प्रभाव को निरस्त कर दिया जो स्थाई कमीशन के लिये कुछ श्रेणियों तक ही सीमित करती थी। पीठ ने इस पर अमल के लिये तीन दिसंबर, 2008 को जारी दिशानिर्देशों को रद्द करते हुये कहा कि छह सितंबर, 2008 के नीति पत्र में भविष्य में नौसेना के विर्निदिष्ट काडर और प्रकोष्ठों में ही प्रभावी होने संबंधी प्रावधान लागू नहीं किया जायेगा।
पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने पर न्याय को नुकसान होगा। पीठ ने कहा कि केन्द्र द्वारा वैधानिक अवरोध हटा कर महिलाओं की भर्ती की अनुमति देने के बाद नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने में लैंगिक भेदभाव नहीं किया जा सकता। पीठ ने केन्द्र की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि नौसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अधिकारियों को समुद्र में जाने की ड्यूटी नहीं दी जा सकती है क्योंकि रूस में निर्मित जहाजों में उनके लिये अलग से वाशरूम नहीं हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह की दलीलें केन्द्र की 1991 और 1998 की नीति के विपरीत हैं। इन्हीं नीति के तहत केन्द्र ने नौसेना में महिला अधिकारियों को शामिल करने पर लगी कानूनी पाबंदी हटा ली थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जब एक बार महिला अधिकारियों की भर्ती के लिए वैधानिक अवरोध हटा दिया गया तो स्थायी कमीशन देने में पुरुष और महिलाओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।’’ पीठ ने नीति के तहत 2008 से पहले नौसेना में शामिल की गयी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर पड़ने वाले प्रभाव को निरस्त कर दिया। पीठ ने सेवानिवृत्त हो चुकी उन महिला अधिकारियों को पेंशन का लाभ भी प्रदान किया जिन्हें स्थाई कमीशन नहीं दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसे पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य हैं जिनसे पता चलता है कि नौसेना में महिला अधिकारियों ने सेना के लिये ढेरों उपलब्धियां प्राप्त की हैं। न्यायालय ने आईएनएस ज्योति युद्धपोत पर सेवारत महिला नौसेना अधिकारियों की उपलब्धियों का जिक्र किया।
न्यायालय ने कमांडर रूबी सिंह का उदाहरण दिया, जो 1993 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर नौसेना की टुकड़ी में एक पलटन का नेतृत्व करने वाली भारतीय महिला बनीं। न्यायालय ने आईएनएसवी तारिणी का भी उल्लेख किया, जिसने समुद्री मार्ग से विश्व का चक्कर लगाया था। इस टीम की सभी सदस्य महिलाएं थी। न्यायालय ने केंद्र को नौसेना में महिला अधिकारियों को तीन महीने के अंदर स्थायी कमीशन देने के लिए विचार करने को कहा। साथ ही, यह भी कहा कि यह 1963 के ‘नेवल सेरेमोनियल रेगुलेशन’ के आधार पर होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि नौसेना की शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारी, जो स्थायी कमीशन के लिए उपयुक्त पाई जाएंगी, वे वेतन बकाये के भुगतान, पदोन्नति और सेवानिवृत्ति लाभों को हासिल करने के लिए योग्य होंगी।
कई महिला अधिकारियों की ओर से पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि करीब 100 महिला अधिकारी (सेवारत एवं सेवानिवृत्त) इस फैसले से लाभान्वित होंगी। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि काम पर कार्य निष्पादन और राष्ट्र की खातिर समर्पण मौजूदा लैंगिक रूढ़ीवाद को उपयुक्त जवाब है। न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों ने राष्ट्र के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। न्यायालय ने नौसेना के लिए पहली पायलट बनीं सब-लेफ्टिनेंट शिवांगी, आईएनएस ज्योति पर सेवा देने वाली लेफ्टिनेंट संध्या सूरी, सर्वश्रेष्ठ इंस्ट्रक्टक्टर पुरस्कार हासिल करने वाली (आईएनएस शिवाजी) कमांडर सुहास पाटनकर के उदाहरणों का जिक्र किया। आईएनएस सुजाता (2002) पर सेवा देने वाली कमांडर रीना मागदालेने, कमांडर अनुराधा कांची और कमांडर बबिता रावत और अन्य महिला अधिकारियों का भी जिक्र किया।